Best कड़वा सच शायरी, अनमोल वचन, सुविचार, स्टेटस, Quotes कलयुग कड़वा सच 1975 आपातकाल जीवन मक्का मदीना | देखें कि जमाने में क्या गुल खिलाते हैं हम अब तक तो दर्द को ही उगाते रहे हैं हम कश्ती के मरासिम से दरिया में आ गए वरना किनारों से ही दिल लगाते रहे हैं हम मुहब्बत की आग में जो जलके खाक हो चुके उनमें भी कुछ धुएं को जगाते रहे हैं
#कड़वा सच
वफ़ा की ज़ंज़ीर से डर लगता है….
कुछ अपनी तक़दीर से डर लगता है….
जो मुझे तुझसे जुदा करती है….
हाथ की उस लकीर से डर लगता है…..
उनकी ‘परवाह’ मत करो,
जिनका ‘विश्वास’
“वक्त” के साथ बदल जाये..
‘परवाह’
सदा ‘उनकी’ करो;
जिनका ‘विश्वास’ आप पर
“तब भी” रहे’
जब आप का “वक्त बदल” जाये.
ज़रा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं !
सलामत आईने रहते हैं, चेहरे टूट जाते हैं !!
पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में,
बहुत बेबाक होते हैं वो रिश्ते टूट जाते हैं !!
नसीहत अब बुजुर्गों को यही देना मुनासिब है,
जियादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं !!
दिखाते ही नहीं जो मुद्दतों तिशनालबी अपनी, ,
सुबू के सामने आके वो प्यासे टूट जाते हैं !!
समंदर से मोहब्बत का यही एहसास सीखा है,
लहर आवाज़ देती है किनारे टूट जाते हैं !!
यही एक आखिरी सच है जो हर रिश्ते पे चस्पा है,
ज़रुरत के समय अक्सर भरोसे टूट जाते हैं
चाहा है तुम्हें अपने अरमान से भी ज्यादा,
लगती हो हसीन तुम मुस्कान से भी ज्यादा,
मेरी हर धड़कन हर साँस है तुम्हारे लिए,
क्या माँगोगे जान मेरी जान से भी ज्यादा।
ख़त्म कर दी थी जिंदगी की सारी खुशियाँ तुम पर,
कभी फुरसत मिले तो सोचना की मोहब्बत किसने की थी !!
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